Friday, January 18, 2013

पैड की उपपोगीता



पैड बगेर की विश्व की कल्पना हो शकती है ? पैड के बिना हमारा जीवन संभवही नही . पैड हमे इतना कुछ देता है की उसका मोल करना मुश्किल हि नही नामुमकिन है .पैड से ही हमारा जीवन संभव है ओर पेड बिना जीना असंभव है . पेड हमे खाना-पानी ओर सुद्ध वायु देता है .

हम जानते है के की हमारे जीवन के लीए ओक्सीजन वायु कितना जरूरी है . पैड कार्बन डाइओक्साइड को ग्रहन कर ओक्सीजन वायु को मुक्त करता है . एक तरह से वो हमारे लीए छन्नी का काम करता है . बढते वायु प्रदुशन से कार्बन डाइओक्साइड स्तर दिन-प्रतिदिन बढता जाता है . इस खतरे को रोकने के लीए हमे ज्यादा से ज्यादा पैड बो ने चाहिये ओर उसका रख रखाव करना चाहीये .

हमारे खाने की बडी आत्र हमे पेड के द्रारा मीलती है . फले हमे प्रतिदिन के पोशक तत्व की बडी आत्र की आपुर्ती करते है . विटामीन ओर मीनरलस के बिना हमारा स्वास्थय बिगड शकता है .कुदरती रुप से इसे पाने के लीए पैड एक आत्र जरीया है.

वापु ओर आहार जीतना ही पानी का हमारे जीवन मै महत्व है . पानी के बिना हमारा जीवन शक्य ही नही . बारीस को लाने मै पैड की अहम भुमीका है . मैदानी इलाके उकाबले घने पैड वाले इलाके मै ज्यादा बारीस होती है . सुद्ध पानी की बडी आत्रा हमे बारीस के जरीये ही ईलती है . इसी वजह से हमे पेडो का जतन करना चाहीये .

तेज बारीस अपने साथ मीट्टी भी बहाके ले जाती है . इस मीट्टी के साथ जमीन के पोशक तत्व भी बह जाते है जो की धन-धान्य के उत्पादन के लीए जरूरी है .यह सीलसीला लंबा चला तो अंत मे भुमी बंजर हो जाती है . पैड की जडे मीट्टी को बहने से रोकती है ओर भुमी को बजर होने से भी .

पेड रेगीस्तान को भी आगे बढता हुआ रोकते है . रेगीस्तानी बालु वाली हवा ए अच्छी जमीन के उपर अपना स्तर बनाके उसे भी बीन उपजाउ बनाती है ओर एक समय के बाद वो भी रेगिस्तान मे तबदील हो जा ता है .

इस तरह पैड हमारे जीवन के लीए बहुती उपयोगी होते है ओर हमे उनका जतन करना चाहीये .
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“ बाल मजदुरी ” –एक व्यापक समस्या



भारत एक बहोती बडा देश है . तकरीबन सवा सो करोड से ज्यादा की आबादी मे से करीब करीब आधी आबादी गरीब है . देश के लाखो परिवार मे कमाने वाला एक ओर खाने वाले कइ लोग एइसा हाल है. इस बिच बढती महेंगाइ मै गुझारा करना मुश्किल हो पडता है . इसी कारन लाखो बच्चो को अपना बचपन कीसी कारखाने या तो होटेल-ढाबे काम करके खोना पडता है . स्कुल जाने की उम्र मै कई बच्चे काम मे जुट जाते है . उसे बाल मजदूरी कहेते है . कानुनी रूप से उस पर पाबंधी है .

      हमारे देश मे सालो से होता आया है उसी तरह इस कानुन पर भी मजबुरी भारी है . पैसो की जरूरत बच्चो को काम करने के लीए मजबुर करते है तो दुसरी ओर कम मजदुरी मे व्यापक बच्चे की लालच से लोग इन बच्चो को काम पर रखते है . जीस उम्र मै बच्चो को हसना-खेलना-पढना-लीखना चाहीये उस उम्र मे वो बर्तन मांजना या माल ढो ना शिखते है . जो कंधे स्कुल बेग उठाने के लीए होते है वो कंधे सामान उठाने लगते है .

      मध्याहन भोजन, मुफ्त ओर अनिवार्य तोर पर शिक्षा, ओर बाल मजदुरी निषेध कानुन आने के बाद यह समस्या थोडी बहोत कम हुई है किन्तु व्यापक जन-जागृती ना होने से इसे दुर करना कठीन है . इस समस्या के मुल मै एक पक्ष नी मजबुरी ओर दुसरे पक्ष की लालच है .

      जो बच्चे बचपन से ही काम मै जुटजाते है ओर शाला नही जाते उसमै शिक्षा की मात्रा बहोत कम होती है . अच्छे-बुरे की समज काम होती है . खराब संगत के चलते व्यसन जल्दी आ जाता है . बडे होने पर आम प्रवाह मे समलीत होने मे दिक्कत होती है. फिर वो चोरी-चक्कारी जैसे गुनाहित रास्ते पर चले जाते है . इसे समाज का सतुलन खराब होता है .

      इसी लीए ना तो हमे कीसी कम उम्र की व्यक्ति को काम पर रखना चाहीए ओर ऐसी कोई जगह हम कीसी एसे व्यक्ति को काम करते देखे तो हमे विरोद्द करना चाहीये. जीस तरह हमे अच्छी पढाइ का अवसर मीला है वैसा ही अवसर उन्हे भी मीले वो उनका हक भी है ओर हमारा कर्तव्य भी.

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भ्रष्टाचार का शिष्टाचार



पिछले कुछ सालो से हमारे देश मे भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-आक्रोस जाग गया है . मानो पुरा देश गहरी निंद से एका एक जाग ना गया हो इस तरह पुरा देश इस समस्या के खिलाफ एक हो गया है . इस आंदोलन का अंजाम क्या होगा वह तो किसी को पता नही है पर इस समस्या के खिलाफ जो जन-जागृती आई है उससे थोडी बहोत आशा की किरन जरूर दिख रही है .

      कई सालो से भ्रष्टाचार के खिलाफ दबा दबा सा जो गुस्सा है लोगो को उसे जताने का अन्नाजी जैसा एक माध्यम मीला है . सालो से लोग राशन कार्ड से पासपोर्ट ओर चपरासी से बडे अफसर के पास झायज ओर ना-झायज काम निकलवा ने के लीए घुस देते आए है . जन्म का प्रमाण पत्र हो या मरण का, नकद नारायण के बिना कोई काम नही होता है . रेल्वे टीकीट हो या मंदिर की पुजा, नर्सरी का दाखला हो या मेडीकल कोलेज का दाखला, या फिर पेन्शन चालु करवाना हो जीवन के हर कदम हमे किसी ना किसी रुप मे इस समस्या का सामना करना ही पडता है . मानो भ्रष्टाचार कोइ समस्या नही एक शिष्टाचार हो.

      इस जन-आदोलन का फेलावा देक कर ही हम समज शकते है की लोको के अंदर इस समस्या के खिलाफ कितना गुस्सा है. हम कितने सालो से इस समस्याके खिलाफ जुज रहे है किन्तु आज तक सफलता नही मीली . उल्टा यह समस्या साल दर साल अपना दायरा बढाती ही जाती है . चाय-पानी से जीसकी सुरूआत हुई थी आज उस का दायरा अरबो रूपैए के घोटालो तक फेल गया है . कानुन के रक्षक ओर निर्माता भी इस के दायरे मे आ गये है . हम यह कह सकते है की इस समस्या की जडे गहेरी ओर गहेरी होती जा रही है .

      भारत मुलत्व एक बडी आबादीवाला देश है . इस आबादी का एक बडा हिस्सा आज भी मुलभुत सुविधाओ से वंचित है . आबादी मे आर्थीक असमानता भी है . स्वाधीनता के बाद मुलभुत सुविधाओ की दिशा मै शासन कर्ताओ को जो काम करना चाहिये था वो काम नही होने से आबादी के अनुपात मे वो सुविधा ए कम है . देश के सभी हिस्सो मै एक अनार सो बिमार जैसी ही स्थीति है . ओर इसी स्थिती की वजह से मुल रूप से भ्रष्टाचार का जन्म होता है . जीस चिझ की मांग ज्यादा होती है उस की किंमत मे उछाल आता है उसी तरह जीस सेवा की ज्यादा मांग होती है उस मै भ्रष्टाचार पनपता है .

      भ्रष्टाचार को रोकने के लीए सु-शासन के साथ मुल भुत आवश्यता ओ को देश के हर एक लोगो तक पहोचाना होगा . जीस दीन यह काम हो गया उस दीन यह देश अवश्य ही भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा .

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