Friday, January 18, 2013

“ बाल मजदुरी ” –एक व्यापक समस्या



भारत एक बहोती बडा देश है . तकरीबन सवा सो करोड से ज्यादा की आबादी मे से करीब करीब आधी आबादी गरीब है . देश के लाखो परिवार मे कमाने वाला एक ओर खाने वाले कइ लोग एइसा हाल है. इस बिच बढती महेंगाइ मै गुझारा करना मुश्किल हो पडता है . इसी कारन लाखो बच्चो को अपना बचपन कीसी कारखाने या तो होटेल-ढाबे काम करके खोना पडता है . स्कुल जाने की उम्र मै कई बच्चे काम मे जुट जाते है . उसे बाल मजदूरी कहेते है . कानुनी रूप से उस पर पाबंधी है .

      हमारे देश मे सालो से होता आया है उसी तरह इस कानुन पर भी मजबुरी भारी है . पैसो की जरूरत बच्चो को काम करने के लीए मजबुर करते है तो दुसरी ओर कम मजदुरी मे व्यापक बच्चे की लालच से लोग इन बच्चो को काम पर रखते है . जीस उम्र मै बच्चो को हसना-खेलना-पढना-लीखना चाहीये उस उम्र मे वो बर्तन मांजना या माल ढो ना शिखते है . जो कंधे स्कुल बेग उठाने के लीए होते है वो कंधे सामान उठाने लगते है .

      मध्याहन भोजन, मुफ्त ओर अनिवार्य तोर पर शिक्षा, ओर बाल मजदुरी निषेध कानुन आने के बाद यह समस्या थोडी बहोत कम हुई है किन्तु व्यापक जन-जागृती ना होने से इसे दुर करना कठीन है . इस समस्या के मुल मै एक पक्ष नी मजबुरी ओर दुसरे पक्ष की लालच है .

      जो बच्चे बचपन से ही काम मै जुटजाते है ओर शाला नही जाते उसमै शिक्षा की मात्रा बहोत कम होती है . अच्छे-बुरे की समज काम होती है . खराब संगत के चलते व्यसन जल्दी आ जाता है . बडे होने पर आम प्रवाह मे समलीत होने मे दिक्कत होती है. फिर वो चोरी-चक्कारी जैसे गुनाहित रास्ते पर चले जाते है . इसे समाज का सतुलन खराब होता है .

      इसी लीए ना तो हमे कीसी कम उम्र की व्यक्ति को काम पर रखना चाहीए ओर ऐसी कोई जगह हम कीसी एसे व्यक्ति को काम करते देखे तो हमे विरोद्द करना चाहीये. जीस तरह हमे अच्छी पढाइ का अवसर मीला है वैसा ही अवसर उन्हे भी मीले वो उनका हक भी है ओर हमारा कर्तव्य भी.

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